— बाबा खडक सिंह के उपर भारत सरकार ने डाक टिक्ट भी किया था जारी
अमृतसर
बाबा खड़क सिंह इंडो ब्रिटिश अंदोलन के इतिहास के सर्वाधिक चमकदार सितारों में से एक थे। उनका नाम पंजाब के राजनीतिक इतिहास के साथ जुड़ा है। पाकिस्तान के सियालकोट शहर में एक कुलीन परिवार में बाबा खडक सिंह का जन्म हुआ था । बाबा खडक सिंह पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में स्नातक करने वाले विद्यार्थियों के पहले बैच में शामिल विद्यार्थी थे। उन्होंने अपना सार्वजनक राजनीतिक जीवन 1912 में शुरू किया था। लेकिन 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार तथा उसके बाद पंजाब में मार्शल लॉ के अंतर्गत घटनाक्रमों के विरोध के कारण व वैश्विक राजनीति में आ गए। 1921 में वे एसजीपीसी के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ पहले आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया । चाबियों के मोर्चा के नाम से जाना जाता है जो मोर्चा उसका उनकी ओर से नेतृत्व किया गया। श्री हरमंदिर साहब के तोशाखाना उर्फ खजाना की चाबियों को लौटाने के लिए सिखों की ओर से यह आंदोनल किया गया था। चाबियां हासिल करने के लिए जो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए उसमें बाबा खड़क सिंह पहले व्यक्ति थे। आंदोलन तेज हुआ आखिर समय की सरकार को बाबा जी के सामने घुटने टेकने पडे। जनवरी 1922 को अकाल तख्त पर एक सार्वजनिक समारोह के दौरान अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधियों ने तोशाखाना की चाबियां बाबा जी को सौंप दी । उस दिन महात्मा गांधी जी ने उन्हें टेलीग्राम भेज कर भारत की स्वतंत्रता के लिए पहली निर्णायक लड़ाई जीतने पर बधाई दी। इसके बाद उनकी जीवन यात्रा लगातार बहादुरी वह संघर्ष की गाथाएं बन गई। उन्होंने अन्याय तथा साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई को नेतृत्व दिया और कई बार जेल गए। भड़काऊ भाषण देने व कारखाने में तलवारें आदि बनाने के आरोपों के तहत कई बार जेल गए। उन्हें पाकिस्तान के अंतर्गत आते डेरा गाजी खान की जेल में रखा गया। सरकार के आदेशों पर जेल अधिकारियों ने उनके ऊपर सख्ती लागू करते हुए किसी भी तरह की काली पगड़िया आदि पहनने पर रोक लगा दी थी । बाबा खडक सिंह ने कपड़े ना पहने वाले आंदोलन में भी हिस्सा लिया जिसमें प्रदर्शनकारी सिर्फ कशहरा और धोती पहनकर ही हिस्सा लेते थे वर्ष 1928—1929 के दौरान उन्होंने नेहरू कमेटी रिपोर्ट का विरोध किया । बाबा खड़क सिंह राष्ट्रीय एकता के समर्थक थे। वह मुसलमानों की ओर से अलग पाकिस्तान और कुछ सिखों की ओर से अलग सिख राज्य की मांग के भी खिलाफ रहे थे।
बाबा खडक सिंह गुरुद्वारा एक्ट लागू होने से पहले 14 अगस्त 1921 से लेकर 19 फरवरी 1922 तक एसजीपीसी के अध्यक्ष रहे। इस के बाद गुरुद्वारा एक्ट लागू होने के बाद भी वह 1 अक्टॅबर 1926 से लेकर 12 अक्टूबर 1930 तक एसजीपीसी के अध्यक्ष रहे। बाबा खडके सिहं ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था । परंतु वह सिखों के अधिकारों व हितों की लडाई में लगातार अग्रेणी कतार में रहे। 6 अक्टूबर 1988 में भारत सरकार की ओर से बाबा खडक सिंह के उपर एक डाक टिक्ट 60 पैसे का भी जारी किया गया था।
श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा कि बाबा खड़क सिंह का सिख कौम के लिए बढा योगदान रहा है। चाबियों का मोर्चा सिख इतिहास में एक बडी घटना है। बाबा खडक सिंह इस मोर्चो के नायक थे। अभी तक बाबा खडक सिंह की याद के संबंध में कोई भी गुरुद्वारा नही बनाया गया है।
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एसजीपीसी के प्रवक्ता कुलविंदर सिंह रमदास ने कहा कि एसजीपीसी की ओर से अपने रह चुके अध्यक्षों की याद में अखंड पाठ साहिब रखवाए जाते है। बाबा खडक सिंह की याद में भी अखंड पाठ साहिब रखा जाता है और अरदास की जाती है। 6 जून को छेवें गुरु श्री गुरु हरि गोबिंद साहिब जी का प्रकश पर्व होता है वहीं 6 जून को श्री हरिमंदिर साहिब पर समय की सरकार की ओर से किए गए सैन्य हमला का दिन भव्य रूप में मनाया जाता है। इस लिए सारी सिख कौम और सिख संगत 6 जून के इन इतिहासिक कार्यक्रमों में भव्य रूप में मनाते है। बाबा खडक सिंह को भी अखंड पाठ व अरदास करके याद किया जाता है।
— पंकज शर्मा
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