रविवार, 19 अगस्त 2012

एक मजदूर से बना था दारा पहलवान, सिंगापुर में जागी थी दारा कि किस्मत



- चोटी के विश्व विजेता पहलवानों को धूल चटा भारत माता का गौरवबढ़ाया था दारा सिंह ने
-पंकज शर्मा 
 धर्मू चक्कर (अमृतसर), 12 जुलाई:
गांव धर्मू चक्क में लोगा का जीवन बहुत ही साधारण था। दारा का परिवार भी बहुत अमीर नहीं था। गांव का एक समान्य परिवार में ही दारा का जन्म 19 नवंबर 1928 को हुआ था। पिता सूरता सिंह एक साधारण किसान था। गांव में दोस्तों के साथ सिर्फ भैंसें चरानी और खेली मस्ती करते रहा। शरीर पुष्ट होने के कारण कभी कभी दोस्तों के साथ थोड़ी बहुत कुश्ती या फिर कभी कभार गांव के आस पास लगते मेलों में जाकर दोस्तों के प्रोत्साहित करने पर अखाड़े की मिट्टी शरीर को लगाने का शौंक पूरा कर लेते थे। परिवार के भरण पोषण के लिए भैंसे चराना ही सब कुछ नहीं था इस लिए पिता ने दारा को विदेश भेजने की योजना बनाई। सिंगापुर में पिता के कुछ दूर के दोस्त थे। जिनके पास काम धंधे व मेहनत मजदूरी के लिए दारा को वर्ष 1947 में सिंगापुर भेज दिया। वहां मेहनत मजदूरी करते समय कुछ भारतियों का ध्यान दारा की कद काठी पर गया और वहां रहने वाले भारतियों ने दारा को कुश्ती के लिए प्रेरित किया। वहां भारतीय फ्री स्टाईल कुश्ती तब काफी प्रसिद्ध थी। वहां रहने वाले भारतियों ने दारा की खुराक आदि की व्यवस्था कर दारा को कुश्ती के मैदान में उतरने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। वहां लोगों ने दारा को कुश्ती के मैदान में उतरने के लिए आर्थिक मदद भी देनी शुरू कर दी। बस इसी से वहां दारा की किस्मत दारा को मेहनत मजदूरी की जगह कुश्ती के क्षेत्र में ले आई। वहां दारा में भारतीय स्टाई की कुश्ती में मलेशिया के चैंपियन तरलोक सिंह को हरा कर कुअलालमपुर में मलेशिया कुश्ती चैपियनशिप में विजय का ध्वज फहराया।
इस के बाद तो दारा की कुश्ती और पहलवानी का सितारा चमकने लग पड़ा। दारा ने अलग अलग पेशेवर पहलवानों को हरा का भारत माता का नाम रौशन करना शुरू कर दिया। कई कुश्तियां जीतने के बाद दारा भारत आए और रूस्तम-ए- हिंद का खिताब भी जीता। उन्होंने कामवैल्थ खेलों के दौरान विश्व चैंपियन किंग कांग को हराया तो दारा सिंह को भारतीय किंग कांग कहा जाने लगा। जिस दिन दारा ने किंग कांग को हराया था तो उस दिन दारा के गांव के लोगों ने खुशी व्यक्त करते हुए गांव में दीपमाला भी की थी। दारा ने न्यूजीलैंड और कनाडा के पहलवानों को भी चित किया था। दारा ने पहलवान जार्ज गाडियांका और न्यूजीलैंड के पहलवान जान डिसिल्वा को भी मात दी और भारत का नाम रौशन किया। वर्ष 1968 में दारा ने अमेरिका के वल्र्ड चैंपियन लाउथेज को भी धूल चटाई थी। वर्षों तक पहलवाने के क्षेत्र में भारत का झंडा बुलंद करने वाले इस पंजाब के सपूत नें 1983 में कुश्ती जगत से सन्यास ले लिया।


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