रविवार, 19 अगस्त 2012

परिवारिक गुढ़ती के रूप में ही मिली दारा सिंह को राजनीति




अमृतसर, 12 जुलाई:
पहलवानी, अभियन और राजनीति की त्रिवेनी दारा सिंह के खून में बहती थी। राजनीति के गुढ़ती दारा सिंह को परिवार से ही मिल गई थी। चाहे दारा ने पहलवानी और अभिनय में काफी नाम कमाया परंतु राजनीति में भी वह पीछे नहीं हटे।
दारा सिंह के पिता सूरता सिंह करीब 25 वर्षों तक गांव के निरविरोध सरपंच रहे। सूरता सिंह को गांव के लोग बिना वोर्टिंग सर्व सम्मति से गांव का सरपंच चुन लेते थे। सूरता सिंह अपने गांव का कोई भी लड़ाई झगड़ा और विवाद पुलिस थानो या फिर कोर्ट कचेहरियों में लेकर नहीं जाने देते थे। गांव के सारे विवाद गांव की पंचायत में भी निपटाए जाते थे। जिस से गांव वासी काफी खुश थे और बार बार सूरता सिंह को ही अपने गांव के सरपंच के रूप में देखना चाहते थे। दारा सिंह भतीजा बलजीत सिंह बताते है कि एक बार गांव का एक विवाद कुछ लोग बागी होकर पुलिस थाना में ले गए। जब सूरता सिंह गांव के सरपंच के रूप में थाना मेहता पहुंचे तो वहां तैनात एक थानेदार ने तो कहा कि गांव धर्मू चक्क है कहां मैने तो कभी इस गांव का नाम ही नहीं सुना है और यह गांव तो शायद उसके थाना के अधीन क्षेत्र में आता ही नहीं। जब सूरता सिंह ने बताया था कि गांव आप के थाना क्षेत्र में ही है। असल में हम अपने सभी विवाद गांव में पंचायत में ही निपटाते है जिस कारण हमारे गांव के लोग कभी थाना में आए ही नहीं। दारा सिंह का परिवार और पिता अकाली दल के काफी करीब थे।
पिता से राजनीति के गुढ़ती दारा को भी मिली। दारा सिंह विभिन्न जन संगठनों के नेता भी रह चुके है और संगठनों के माध्यम से जन सेवा में विशेष योगदान भी दे चुके है। वर्ष 2003 में दारा सिंह को राज्य सभा का सदस्य भी चुना गया। इस अवसर कमेटी आफ हियूमन रिर्सोस डिवेल्पमेंट के सदस्य, भारत सरकार के युवा व खेल मंत्रालय की कंसल्ट कमेटी के सदस्य, वर्ष 2006 में सूचना तकनालोजी कमेटी के सदस्य, सूचना व प्रसारण मंत्रालय की कंसल्ट कमेटी के भी मैंबर रह चुके है।
दारा सिंह वर्ष 1997 में आल इंडिया जट समाज के अध्यक्ष, 1987 में मुबई जट समाज के अध्यक्ष ओर 2005 में सिनेमा आर्टिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष की जिम्मेवारी भी निभा चुके है। 2007 में दारा सिंह ने अखिल भारतीय जट महासम्मेलन की अध्यक्ष्ता भी की। जट आरक्षण के लिए भी एक बार दारा सिंह मैदान में आए थे परंतु बाद में वह पीछे हट गए थे।
-पंकज शर्मा

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