गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

——7 गुरु नानक देव जी के साथ संबंधित गुरुद्वारे——— अमृतसर के आसपास

——7 गुरु नानक देव जी के साथ संबंधित गुरुद्वारे——— अमृतसर के आसपास

सतिगुरु नानकु प्रगटिआ मिटि धुंधु जग चानणु होआ
—श्री गुरु नानक देव जी के चरण जहां पड़े वहां बने ऐतिहासिक गुरुद्वारे
पंकज शर्मा
अमृतसर। श्री गुरु नानक देव जी महान आध्यात्मिक चिंतक व समाज सुधारक थे। गुरु जी विश्व के अनेक भागों में गए और मानवता के घर्म का प्रचार किया। यहां यहां गुरु साहिब के चरण पड़े वहां आज ऐतिहासिक गुरुद्वारे बने हुए है। गुरू जी का जन्म राय भोईं की तलवंडी में पिता महिता कालू एवं माता तृप्ता के घर सन् 1469 ई. में हुआ। वास्तव में गुरु जी का अवतरण बैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया को हुआ परन्तु सिख जगत में परंपरा अनुसार आपका अवतार पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। अपनी चार यात्राों के दौरान  गुरु जी ने विश्व के अनेक भागों में गए और मानवता के घर्म का प्रचार किया।
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 विलक्षण व्यक्तित्व के मालिक थे गुरु साहिब
गुरु जी के महान व्यक्तित्व के विषय में भाई गुरदास ने कहा है'सतिगुरु नानकु प्रगटिआ मिटि धुंधु जग चानणु होआ।' यानि उनके आने से संसार से अज्ञान की धुंध समाप्त होकर ज्ञान का प्रकाश फैला। पंजाब में आपके चरण जहां-जहां पड़े वहां आज ऐतिहासिक गुरुद्वारे सुशोभित हैं ।
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ननकाना साहिब
श्री गुरु नानक जी का जन्म स्थान होने के कारण यह जगह सबसे पवित्र स्थलों में से एक मानी जाती है। ननकाना साहिब में जन्मस्थान समेत 9 गुरुद्वारे हैं, जिसमें श्रद्धालुओं की आस्था है। ये सभी गुरु नानक देव जी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़े हैं। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते हैं। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित शहर ननकाना साहिब का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा है। इसका पुराना नाम 'राय भोई दी तलवंडी' था। यह लाहौर से 80 किमी दक्षिण-पश्‍िचम में स्थित है और भारत में गुदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से भी दिखाई देता है। गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान होने के कारण यह विश्व भर के सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानक देव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था। यहां गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश स्थान के चारों ओर लंबी चौड़ी परिक्रमा है, जहां गुरु नानक देव जी से संबंधित कई सुन्दर पेंटिग्स लगी हुई हैं। ननकाना साहिब में सुबह तीन बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमग करता ननकाना साहिब एक स्वर्गिक नजारा प्रस्तुत करता है। दुनिया भर से हजारों हिन्दू, सिख गुरु पर्व से कुछ दिन पहले ननकाना साहिब पहुंचते हैं और दस दिन यहां रहकर विभिन्न समारोहों में भाग लेते हैं।
गुरु नानक देव के जन्म के समय इस जगह को 'रायपुर' के नाम से भी जाना जाता था। उस समय राय बुलर भट़टी इस इलाके का शासक था और बाबा नानक के पिता उसके कर्मचारी थे। गुरु नानक देव की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और राय बुलर भट़टी ने ही पहचाना। राय बुलर ने तलवंडी शहर के आसपास की 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानकदेव को उपहार में दी थी, जिसे 'ननकाना साहिब' कहा जाने लगा। जिस स्थान पर गुरु नानक जी को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया, वहां आज पट़टी साहिब गुरुद्वारा शोभायमान है।
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श्री करतारपुर साहिब
गुरु जी करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) में आकर बस गए और 17 साल यहीं रहे। वह खेती का कार्य करने लगे। यहीं सन् 1532 ई. में भाई लहिणा आपकी सेवा में हाजिर हुए और सात वर्ष की समर्पित सेवा के बाद गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी के रूप में गुरगद्दी पर शोभायमान हुए। गुरु नानक देव जी 22 सितंबर 1539 ई. को ज्योति जोत समाए। इस स्थान पर गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए थे। इसलिए इस गुरुद्वारे की काफी मान्यता है। करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। आज स गुरुद्वारा में आने जाने के लिए श्रद्धालुाओं को भारत  और पाकिस्तान ने सुविधा देते हुए कोरिडोर दिया है।
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बटाला में श्री कंध साहिब

बटाला स्थित श्री कंध साहिब में गुरु जी की बारात का ठहराव हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार सम्वत 1544 यानी 1487 ईस्वी में गुरु जी की बारात जहां ठहरी थी वह एक कच्चा घर था। जिसकी एक दीवार का हिस्सा आज भी शीशे के फ्रेम में गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में सुरक्षित है। इसके अलावा आज यहां गुरुद्वारा डेरा साहिब है, जहां श्री मूल राज खत्री जी की बेटी सुलक्खनी देवी को गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी से बारात लेकर ब्याहने आए थे। गुरुद्वारा डेरा साहिब मेंं आज भी एक थड़ा साहिब है, जिस पर माता सुलक्खनी देवी जी तथा श्री गुरुनानक देव जी की शादी की रस्में पूरी हुई थीं। इन गुरुघरों की सेवा संभाल का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कर रही है। हर साल उनके विवाह की सालगिरह पर सुल्तानपुर लोधी से नगर कीर्तन यहां पहुंचता है।

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डेरा बाबा नानक के गुरुद्वारा श्री चोला साहिब में है गुरु नानक देव जी का चोला

भारत और पाकिस्तान सरहद के पास बसे जिला गुरदासपुर के डेरा बाबा नानक में सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम दिन बिताए थे। यह नगर गुरुद्वारों का नगर भी कहलाता है। यहां गुरुद्वारा बड़ा दरबार साहिब, गुरुद्वारा श्री चोला साहिब, बाबा श्री चंद जी का दरबार गांव पखोके टाहली साहिब और गांव चंदू नंगल में भी स्थित है। यहां स्थापित गुरुद्वारा चोला साहिब में श्री गुरु नानक देव जी की तरफ से यात्राओं के समय पहना गया पहरावा है, जो एक चोला था, वो आज भी शीशे के फ्रेम में वहां मौजूद है। जहां गुरुद्वारा साहिब बना है, उस मोहल्ले का नाम भी श्री चोला साहिब ही है। इस स्थान पर हर साल मेला एक हफ्ते से अधिक तक चलता है जो ‘चोला साहिब दा मेला’ से मशहूर है। इस कारण डेरा बाबा नानक में बना गुरुद्वारा चोला साहिब लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
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गुरु साहिब का जीवन अध्यात्मिक था

गुरु नानक देव जी के पिता महिता कालू खेतीबाड़ी और व्यापार करते थे और साथ ही इलाके के जागीरदार राय बुलार के द्वारा नियुक्त गांव के पटवारी भी थे। पिता की इच्छा थी कि पुत्र उनका खानदानी कारोबार संभाले सो बचपन में गुरु जी को गोपाल पंडित के पास भाषा, पंडित बृज लाल के पास संस्कृत एवं मौलवी कुतबुद्दीन के पास फारसी पढ़ने के लिए भेजा। पठन-पाठन के समय में गुरु जी की आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को पहचान कर गुरु-जन नतमस्तक हुए बिना न रह सके। सांसारिक कार्य-व्यवहारों से उदासीनता और आध्यात्मिक रंग में रचे रहने की आपकी रुचि 'सच्चे सौदे' जैसे प्रसंगों से और मुखर हुई जब आपने व्यापार के लिए पिता से मिले बीस रुपये साधु-संतों को भोजन कराने में खर्च कर दिए। इसी प्रकार 'सर्प की छाया' और 'चरे खेत का हरा होना' जैसे प्रसंगों ने भी गुरु जी की आध्यात्मिक क्षमता को जनता पर प्रकट किया।
मोदीखाने में नौकरी की। पुश्तैनी धंधे में लगाने पर असफल रहने पर पिता ने आपको बहन बेबे नानकी और बहनोई जै राम के पास सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। यहां गुरु जी को नवाब के मोदीखाने में नौकरी मिल गई। गुरु जी मोदीखाने में पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ सामान बेचते और साथ ही जरूरतमंदों को मुफ्त में सामान बांटते रहते। ईष्र्यालुओं ने नवाब दौलत खां से शिकायत की। मोदीखाने का हिसाब-किताब जंचवाया गया तो सब कुछ दुरुस्त निकला।
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यात्राएं
13 वर्ष तक मोदीखाने में नौकरी करने के बाद गुरु नानक देव जी ने लोक कल्याण के लिए चारों दिशाओं में चार यात्राएं करने का निश्चय किया जो चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हुईं। सन् 1499 ई. में आरंभ हुई इन यात्राओं में गुरु जी भाई मरदाना के साथ पूर्व में कामाख्या, पश्चिम में मकका-मदीना, उत्तर में तिब्बत और दक्षिण में श्रीलंका तक गए। मार्ग में अनगिनत प्रसंग घटित हुए जो विभिन्न साखियों के रूप में लोक-संस्कार का अंग बन चुके हैैं। सन् 1522 ई. में उदासियां समाप्त करके आपने करतारपुर साहिब को अपना निवास स्थान बनाया।
— पंकज शर्मा

 

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