रविवार, 19 अगस्त 2012

रूस्तम-ए-हिंद का खिताब आज भी है दारा सिंह के परिवार के पास



- वर्ष 1978 में दारा सिंह और बाद में 1991 में दारा के भतीजा बल्ला ने जीती थी रूस्तम- ए - हिंद की बैल्ट

अमृतसर, 12 जुलाई:
दारा सिंह की ओर से वर्ष 1978 में जीता गया रूस्तम- ए- हिंद का खिताब आज भी दारा सिंह के परिवार के पास ही है। चाहे दारा सिंह के परिवार से कोई भी पहलवानी के क्षेत्र में नहीं गया। परंतु उनके भाई एसएस रंधावा का पुत्र बलजीत सिंह बल्ला भी दारा सिंह की तरह कुश्ती में किसमत अजमाता रहा और 1991 में बल्ला ने भी रूस्तम- ए - हिंद का खिताब हासिल कर लिया। आज भी रूस्तम- ए- हिंद की बैल्ट दारा के परिवार में ही उसके भतीजे के बल्ला के पास है। आज तक कोई भी अन्य व्यक्ति यह बेल्ट व खिताब हासिल करने में सफल नहंी हो पाया है।
दारा सिंह को काफी शौंक था कि पहलवानी में उनके परिवार की सरदारी रहे। वह चाहते थे कि उनका भी कोई बेटा पहलवानी में आगे आए। परंतु ऐसा हुआ नहीं। सिर्फ भतीजा ही इस क्षेत्र में आया । बाद में भतीजा ने भी पहलवानी छोड़ दी। भतीजा आज कर दिल्ली में बिल्डर्स व कंस्ट्रेक् शन का काम कर रहा है। भतीजा बल्ला की खवाहिश है कि दारा सिंह के सपने को पूरा करते हुए गांव में एक पहलवानी के लिए कुश्ती अकादमी गठित की जाए। जिस के उपर वह पिछले काफी समय से काम कर रहे है। एक बार दारा सिंह ने यह अकादमी अपने गांव में शुरू भी की थी परंतु युवाओं का उत्साह पहलवानी की तरफ न दिखाई दिये जाने के कारण इस अकादमी को बंद करना पड़ा।
दारा सिंह की ओर से समय समय पर विभिन्न कुश्ती के खिताब हासिल किये। जिनमें नेशनल रेसलिंग अलाइंस चैंपियनशिप, कनेडियन ओपन टैग टीम चैंपियनशिप, रूस्तम- ए- पंजाब वर्ष 1996 में जीता, रूस्तम- ए- हिंद खिताफ वर्ष 1978 में जीता था। इस के अलावा सैंकडों छोटे स्तर की हुई प्रतियोगिताओं में अलग अलग खिताब हासिल किये थे।
दारा सिंह भतीजा बल्ला बताते है कि हमारे परिवार को गर्व है कि रूस्तम- ए- हिंद का खिताब दो बार हमारे परिवार को मिला और अभी भी हमारे परिवार के पास ही है। अब देखों यह खिताब भविष्य में कौन लेकर भारत का नाम रौशन करता है।
-पंकज शर्मा



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