रविवार, 19 अगस्त 2012

दारा की दुआ के लिए धर्मू चक्क के हर व्यक्ति ने फैलाई हुई के भगवान के घर में झोली



- बच्चा बच्चा बना हुआ है फरियादी, गांव प्रतीत हो रहा है अल्ला की दरगाह
पंकज शर्मा
धर्मू चक्क (अमृतसर):
अमृतसर के पिछड़े गांव धर्मू चक्क के लोगों के सिर अंतरराष्ट्रीय पहलवान व गांव के सपूत दारा सिंह की सेहत याफता के लिए भगवान के आगे झूके हुए है। गांव के लोग भगवान के दर पर झोली फैला कर दारा सिंह की लम्बी आयु के लिए दुआ कर रहे है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि धर्मू चक्क का बच्चा बच्चा फर्यादी बन गया हो और सारा गांव अल्हा की दरगाह बन गया है। हर के हर कोने में लोग एक ही चर्चा दारा सिंह के स्वस्थ्य को लेकर कर रहे है। लोग अपने अपने घरों में दिर रात सिर्फ दारा के स्वस्थ्य होने की ही मुरादें मांग रहे है। धर्मू चक्क गांव के लिए दारा सिंह एक नेक इंसान ही नहीं बल्कि एक मसीहा है। गांव के बच्चे बच्चे के दिल के दार सिंह के लिए अथाह प्रेम व मुहब्बत है। धर्मू चक्क को लोग धर्मू चक्क के नाम से नहीं बल्कि दारा सिंह के गांव के नाम पर याद करते है। अमर उजाला की टीम जैसे ही धर्मू चक्क पहुंचने के लिए अमृतसर मेहता रोड़ पर स्थित गांव नाथ की खूही पर अड्डा मोड़ पर एक दुकार के सामने पहुंची तो दुकान वाले ने प्रश्र करने से पहले ही बोल दिया भाई साहिब दारा सिंह का गांव यहां सीधे ही है। 15 मिनट तक आप इस सडक़े से सीधे गांव में ही पहुंच जाएंगे।
मेन रोड़ से करीब 5 किलोमीटर एक टूटी फूटी व गड्डो से भरी सडक़ के साथ जुड़ा गांव धर्मू चक्क अभी भी पिछड़ा हुआ गांव है। दारा सिंह ने अपने गांव के लिए विकास के लिए बहुत कोशिशें की है। परंतु गांव के लोग को मौजूदा सरकारों से गांव की भलाई की कोई आशा नहीं है।
गांव में बीचोबीच करीब सौ वर्ष पुराने बरगद के पेड़ के पास ही दारा सिंह की हवेली है। पुराने स्टाइल में बनी दारा सिंह की हवेली आज भी गांव की शान है। चाहे आज बहुत से पक्के घर और कोठियां गांव में बन चुकी है। परंतु दारा सिंह के घर की अलग ही पहचान साबित करती है कि यह घर किसी समय भारी चहल पहल का केंद्र हुआ करता था। आज सिर्फ इस गांव में दारा सिंह भाई एसएस रंधावा के पुत्र बलजीत सिंह उर्फ बल्ला अपने परिवार के साथ रहता है। वैसे को बल्ला का बिजनेंस मुबई में है। इस बिल्डर व डिवेल्पर के कारोबार को बल्ला के पिता एसएस रंधावा संभालते है। बल्ला भी पिता के साथ इस काम में हाथ बंटाते है। गांव में परिवार की पैतृक कृषि योग्य भूमि भी है। इस 30 एकड़ के करीब भूमि को परिवार के ठेेके पर दे रखा है। जब दारा सिंह के पिता सूरत सिंह जिंदा थे वह तब तक इस जमीन की संभाल व खेती किया करते थे। वर्ष 2008 में पिता की मौत हो गई थी। दारा सिंह तब गांव आए थे। पिता की मौत के बाद भी एक धार्मिक कार्यक्रम परिवार ने आयोजित किया तब एक बार और फिर गांव में बनाए गए स्टेडियम का शुभारंभ करने भी वह पहुंचे परंतु इस के बाद गांव वालों में दारा सिंह दीदार नहीं किये। आज भी गांव के लोग अपने सपूत के इंतजार में आंखे बिछाए बैठे उसकी सेहत के सुधार के लिए दुआएं कर रहे है। गांव में 3 गुरुद्वारे है। एक भगवान शिव का मंदिर है। 6 के करीब पीरों की मजारें र्है। हर धार्मिक स्थान पर सिर्फ एक ही प्रार्थना   साडा दारा ठीक हो जाए. . .  हो रही है। दारा सिंह की पैतृक हवेली में भगवान राम का दरबार बना हुआ है। सारा परिवार इस राम दरबार में पूजा पाठ करता है। जब भी दारा गांव घर में आता था तो आते ही घर में रसोई के साथ बने राम दरबार में माथा टेकता है। घर से बाहर निकलने के वक्त भी दारा इस राम दरबार के सजदजा करता है। इस बात का खुलासा दारा के परिवार के सदस्यों और दारा की भाभी गुरमीत कौर ने किया। जब दारा सिंह को पहली बार रामायण फिल्म में हनूमान का रोल मिला था तब दारा ने भगवान राम को अपना इष्ट मान लिया था। वैसे दारा धार्मिक तौर पर कट्टर नहीं है। हर धार्मिक जगह पर शीश श्रद्धा निवांते है।
बीस वर्ष की आयु में ही गांव से चले गए थे दारा सिंह
दारा सिंह भतीजे बल्ला बताते है कि जब दारा सिंह आयु 20 वर्ष की थी तब दारा काम की तलाश में विदेश चले गए थे। सिंगापुर में मेहनत मजदूरी करते हुए वहां रहने वाले कुछ पंजाबियों और भारतियों की नजर दारा पर पड़ी तो उन्होंने ने दारा को कुश्तियों के लिए प्रेरित किया। वहां के भारतियों ने ही दारा को बदाम व अन्य खुराक का इंतजाम करने देना शुरू कर दिया। धीरे धीरे दारा कुश्तियों के मुकाबलों में हिस्सा लेने लग पड़े। बचपन में वह कुश्तियां नहीं खेलते थे सिगांपुर में जाकर उन्होंने ने वहां रहने वाले भारतियों की प्ररेणा से प्रोफेशनल कुशती खेलनी शुरू की। बच्पन में वह अपने दोस्तों के साथ घर के पास ही बरगद के पेड़ के नीचे बनी चौपाल के पास थोड़ी बहुत जोर अजमाईश कर लिया करते थे।  गांव के आसपास कभी मेला लगा होता तो वहां भी जाकर कभी कभी अखाड़े की मिट्टी से शरीर को पवित्र कर पहलवानी की एक्सरसाइज कर लिया करते थे।

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