बहुत कठिन है आलोचना की आलोचना : भाटिया
------- शिरोमणि पंजाबी आलोचक पुरस्कार के लिए चनित डा. हरभजन सिंह भाटिया के साथ बातचीत------
पंकज शर्मा
अमृतसर, 20 अक्टूबर
-जिंदगी दे रंग लई किसे काफिये नू लभिईए,
सारा कुझ ही बेजन, बेहर हूंदा जा रिहा,
मच्छीआं च वी अजब हलचल है मच गई,
सरवरां दा पानी शायद जहरीला हूंदा जा रिहा।
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- इह हो हीरे मोती इहना दिखाने ने,
इह इधरो उधरो किथों चुक लिआए ने,
चानन दा पहाड़ समझा के आए सां,
मुर्दा मुर्दा जुगनू इेथे पए ने।
इन लाइनों के लेखर डा. हरभजन सिंह भाटिया आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। डा. भाटिया को पंजाब सरकार की ओर से पंजाबी आलोचक पुरस्कार के लिए चुना है। डा भाटिया आज पंजाबी साहित्य की आलोचना की आलोचना के क्षेत्र में हो रहे शोघ कार्यों में प्रथम नाम है। डा. भाटिया ही पंजाब के पहले ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने पंजाबी साहित्य की आलोचना की आलोचना के क्षेत्र में शोध कार्य शुरू किये और आज उनका नाम पंजाबी साहित्य आलोचना में एक ध्रुव तारा की तरह चमक रहा है। यही कारण है कि पंजाब सरकार को भी आज भाटिया को शिरोमणि पुररूकार के लिए चुनना पड़ा। भाटिया कविता को चाहे क्रांतिकारी कवि अवतार पाश की शायरी से प्रभावित होकर लिखना शुरू किया। परंतु उन्होंने ने पंजाबी अलोचना की अलाचनो को ही अपना जीवन समर्पण करने का फैसला ले लिया था।
भाटिया बताते है कि किसी साहित्य की आलोचना की आगे अलोचना एक चुनौती पूर्ण काम है। उनके अध्यापक डा. आत्मजीत सिंह ने जब अलोचना के इस क्षेत्र को नया और चुनौती पूर्ण बताया तो भाटिया ने उसी समय फैसला ले लिया था कि वह इसी क्षेत्र में काम करके इस चुनौती को सवीकार कारेंगे। आज भी वह इस क्षेत्र में हो रही शोघ को आगे बढ़ा रहे है। भाटिया ने अपनी एमए की शिक्षा के दौरान गजल के उपर शोघ का मन बनाया था। एमफिल के दौरान उन्होंने पंजाबी ड्रामा के बारे में लिखने की योजना बनाई। परंतु पीएचडी में उन्होंने ने आलोचना के चुनौतीपूर्ण क्षेत्र को चुन कर इस क्षेत्र में एक मील पत्थर स्थापित किये है।
अमृतसर में पैदा हुए भाटिया का परिचार वर्ष 1965 की जग के दौरान नकोदर चला गया था। उनके पिता अनपढ़ थे और कपड़े का व्यापार करते थे। नकोदर के ही सरकारी स्कूल में स्कूली शिक्षा और डीएवी कालेज नकोदर में उन्होंने ने बीए मेरिट प्राप्त करके हासिल की। डीएवी कालेज जालंधर से एमए पंजाबी किया और फिर जीएनडीयू से एमफिल पंजाबी और पीएचडी की डिग्री हासिल की। भाटिया की पत्नी अरविंंदर कौर भी लेखक है और सरकारी महिला कालेज अमृतसर के प्रोफेसर है। नकोदर क्षेत्र में क्रंातिकारी कवि पाश का काफी प्रभाव था। इसी कारण वह कांतिकारी साहित्य रचना की तरफ आकर्षित हुए और मार्कसवादी विचारधारा का अध्ययन शुरू कर दिया। आज भी प्रो भाटिया लोक पक्षीय क्रांतिकारी गतिविधियों और साहित्य तथा साहित्य आलोचना के साथ निरंतर जुड़ो होने के साथ साथ पिछले 33 वर्षों से जीएनडीयू में अध्यापक कर रहे है। उन्होंने बहुत सारी इंकलाबी कविताएं खिली परंतु उन्हें कभी किताब के रूप में नहीं प्रकाशित किया। उन्हें लगा कि आचोलना के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। डा भाटिया की आज तक 29 विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। भारतीय साहित्य अकादमी की ओर से उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित की गई है। वह सरस्वती पुरस्कार कमेटी के चेयरमैन भी रह चुके है और इस समय इस कमेटी के पुरस्कार बोर्ड के सदस्य है। इस के साथ ही वह भारतीय साहित्य आकदमी के एडवाइजरी बोर्ड और ज्ञान पीठ पुरस्कार की एडवाइजरी कमेटी के बोर्ड के सदस्य भी पिछले पांच वर्षों से चले आ रहे है।
भाटिया बताते है कि वह अर्थ शास्त्र पढ़ते थे। उनकी कोशिश थी की अर्थ शास्त्र में ही उच्च शिक्षा हासिल की जाए। परंतु जब उन्हें लगा की भाषा ही तो सुप्रीम होती है। जो लोगों को एक दूसरे के साथ मिलाती है और भाषा से ही तो आगे सब कुछ चलता है। वहीं भाषा के अध्यापकों को नलायकों में माना जाता था इसी प्रचार को तोडऩे के लिए उन्होंने ने भाषा के अध्ययन का क्षेत्र चुनके चुनौती वाला शोघ क्षेत्र लिया। डा. भाटिया ने उर्दू, फारीसी में भी डिप्लोमा हासिल किया। आज भी वह इस सभी भाषाओं में अपने पेपर विभिन्न विश्वविद्यालयों में जाकर पढ़ते है। भाटिया वह व्यक्ति है जिन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में अलोचना की अलोचना विषय में पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थी।
भाटिया ने बताया कि सिर्फ अलोचना को ही फाईनल नहीं मान लेना चाहिए। जबकि समय की जरूरत है कि आलोचना की भी अलोचना होनी चाहिए कि क्या वह अलोचना सही है या गलत है। वह जीएनडीयू के डायरेक्टर अकादमिक स्टाफ कालेज भी रहे और जीएनडीयू के आईएएस कोचिंग सेंटर में भी पढ़ते रहे वह हमेशा शिक्षा के व्यापारी करण के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे। उन्होंने 1977 से लेखन का कार्य शुरू किया था जो आज भी लगातार चल रहा है।
----------- डा भाटिया की ओर से प्राप्त पुरस्कार--------
-रवि पुरस्कार 1993
- हरि सिंह यादगारी पुरस्कार- 2000
-प्रोग्रेसिव राईटरज एसोसिएशन पुरस्कार यूके- 2000
-पंजाबी साहित्य सभा वूलवर हैप्टन यूके पुरस्कार- 2000
- पंजाब साहित्य सभी साउथ हाल यूके पुरस्कार-2000
- साहित्य सभी गलैस्को स्काटलैंड पुरस्कार-2000
- पंजाबी अकादमी वूलव हैप्टन पुरस्कार-2002
-पंजाबी साहित्य सभा लैस्टर यूके पुरस्कार-2002
-पंजाबी साहित्य सभी साउथ हैप्टन यूके पुरस्कार- 2002
-पंजाबी अकादमी नौटिंगम अवार्ड -2002
-डा. केसर सिंह केसर यादगारी कलम पुरस्कार- 2005
-डा कुलबीर सिंह कांग साहित्य अलोचना अवार्ड- 2009
-डा जोगिंदर सिंह राही साहित्य अलोचना पुरस्कार- 2010
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डा भाटिया की प्रकाशित पुस्तकें
- मौला बख्श कुशता: जीवन व रचना- 1987
- पंजाबी अलोचना : सिधांत व व्यवहार-1988
-पजाबी साहित्य की इतिहासकारी- 1989
-पंजाबी साहित्य की इतिहासकारी भाग दो-1989
- ज्ञान विज्ञान - 1990
-सरवन चंदन की गलप चेतना-1992
-स. सोज की नावल संवेदना- 1994
-खोर्ज दपर्ण- 1997
- 20वींं सदी की पंजाबी अलोचना: संवाद व मुल्यांकण 2006
- डा रविंदर रवि का चिंतन शास्त्र -2000
-पंजाब गलप संवाद व समीक्षा- 2001
-सरवन संदन : रचना ते संदर्भ-2001
-कुलबीर सिंह कांग ललित निबंध- 2002
-20वीं सदी की पंजाब आलोचना का स्वरूप- 2003
-डा अतर सिंह साहित्स चिंतन- 2003
- पंजाब साहित्य आलोचना का इतिहास-2004
-साहित अध्ययन विधियां- वर्तमान परिपेक्ष-2006
- कौरव सभीा दी परतें- 2006
- चिंतन पुनर चिंतन-2010
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