बुधवार, 14 जुलाई 2010

क्या पत्रकार होना गुनाह है?

by Arun sathi



कुछ प्रश्न बार बार मन में उथल-पुथल मचाये हुए है। जबाब ढुढने पर भी नहीं मिल रहा। पत्रकारिता को समाज सेवा और देशभक्ति का प्रतीक माना जाना अब बन्द हो गया है। अपवादों को छोड़ दे तो पत्रकार का मतलब लंपट, दारूबाज, ब्लैकमेलर और न जाने क्या क्या हो गया है पर क्या वास्तव में ऐसा ही है। हम जिस आवाम के लिए जिम्मेवार है उनकी नज़र में भी हमारी छवि खराब हो चुकी है।






कुछ बात है जो उद्वेलित कर रही है। आखिर पत्रकारिता बदनाम हो चुका है या ``बद´´, यह सबसे बड़ा सवाल है।





सबसे पहले तो यह कि आज जब कहीं किसी पत्रकार की हत्या होती है या फिर उनके साथ मार पीट होती है तब मिडिया खामोश रहती है या फिर औपचारिकता पूरी करती है। एक माडल की हत्या पर चिल्लाने वाली मिडिया आखिर क्यों अपने साथी की मौत पर चुप रहती है कोई तो कारण हो । गांव में कहावत है की कुत्ता भी कुत्ते की मौत पर रोता है पर हमें क्या हुआ है। क्या हम इतने बुरे है। यानि अपने भी हमें बुरा ही मानते है।





इसको लेकर मैं अपना कुछ अनुभव बांटना चाहता हूं चूंकी मैं भी मिडिया जगत का एक अदना सिपाही हूं और हमें भी यह सब देख कर दर्द होता है।





मैं अभी हाल में ही अपने यहां हुए लूट और दो भाईयों को गोली मारे जाने की घटना का जिक्र करना चाहूंगा। सात जुलाई को करीब नौ बजे इस घटना की खबर मिलती है और एक मिनट में मैं अपने एक साथी दीपक के साथ आनन फानन में कैमरा लेकर घटनास्थल की ओर भागा और बिना यह जानेे की अपराधी घटनास्थल से भाग गए हैं या नहीं, मैं वहां पहूंच गया। वह जगह नगर की एक सुनसान गली थी और धुप्प अंधेरा भी था पर किसी बात की परवाह उस समय नहीं थी। लगा जैसे खुन में जुनून सा दौर गया हो, प्रलय आने की तरह। सबसे पहले चैनल को फोन पर घटना की खबर दी उसके बाद घटना स्थल पर कवरेज करने लगा। खुन के छिंटे, गोलियों का खोखा.... । सब कुछ कवर करने के बाद भागते हुए अस्पताल, फिर पिड़ित का घर। इतना सबकुछ करते करते करीब 11 बज गए। सुनसान बाजार पर मैं अपने कार्यालय में बैठा विजुअल कैपचर करने लगा और उसे भेजने के लिए एफटीपी पर डाल दिया। हमारे यहां ब्राडबैण्ड नहीं है इस लिए रिम के मॉडम से भेजने में समय अधिक लगता है। 12 बजे हमारे एक मित्र ने विजुअल की मांग की और हमलोग एक दुसरे से विजुअल का अदान-प्रदान करते रहते है सो मैं देने के लिए तैयार हो गया और वह मेरे यहां से 20 किलोमिटर दूर होने के बाद भी रात में ही विजुअल लेने आ गया।





चार साल पहले के पंचायत चुनाव का जिक्र भी मैं यहां करना चाहूंगा। चुनाव के दिन हमलोगों के लिए चुनौती का दिन होता है। उस समय मैं सिर्फ अखबार के लिए ही काम करता था। बरबीघा का तेउस पंचायत में बड़ी घटना के घटने की संभावना प्रबल थी क्योंकि यहां से अपराधी सरगना और मोकामा विधायक अनन्त सिंह के मनेरे भाई त्रिशुलधारी सिंह तथा उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे थे और पिछले चुनाव में अनन्त सिंह ने पुुरा गांव में घेर कर बुथ लुट लिया था। उनका मुकाबल कुख्यात शूटर नागा सिंह के साले शंभू सिंह से था जिनकी पत्नी चुनाव मैदान में थी। हमलोग बिना इसकी परवाह किए सबसे पहले सुदूर काशीबीघा गांव पहूंच गए जहां हंगामें की सबसे ज्यादा संभावना थी। हमलोग जैसे ही बुथ पर पहूंचे वहां बूथ लूटने का काम हो रहा था। मेरे साथ ईटीवी रिपोर्टर अजीत थे। हमलोगों के पहूंचने से पहले ही वे लोग भाग खड़े हुए और पुलिस कें जवान लोगों को लाइन में लगाने का काम करने लगे। हमलोगों ने बिना भय के विजुअल बनाया और फोटो खिंची। तभी वहां त्रिशुलधारी सिंह का बेटा राजीव आया और धमकी भरे लहजे में यह सब नहीं करने की सलाह दी। पर वही जुनून हमलोग कहां रूकने वाले थे। दिन भर चिलचिलाती धूप में हमलोग मोटरसाईकिल पर धुमते रहे। आज भी याद है उस दिन जब मैं घर पहूंचा पत्नी चैंककर पुछती है क्या हुआ चेहरा काला हो गया है तब मैंं धूप की वजह से मेरा चेहरा और हाथ पूरी तरह सेे काला हो गया था। खैर दो बजे के आस पास हम लोग न्यूज और फोटो पहूंचाने के लिए तीस किलोमिटर दूर नालन्दा जिला के बिहारशरीफ जा रहा था कि सबसे पहले मुझे ही यह खबर मिलती है कि गोवाचक में नरसंहार हो गया है और करीब सात लोग मारे गए है। लगा जैसे खून में उबाल आ गया। तत्काल हमलोग गोवाचक की ओर भागे। नजारा देख कलेजा मुंह में आ गया। फिर पुलिस को इसकी सूचना दी और अपने साथियों को भी दी। पता नही दरिन्दगी के उस मंजर को कैसे कवर किया। भूखे प्यसे और बदहवास। न्यूज कवर कर बिहारशरीफ गया वहां से न्यूज लगाने के बाद फिर गोवाचक आए और रात में 11 बजे घर लौटा।





कई बाकया ऐसा है जो रोज रोज होता है, क्या क्या लिखूं, उबाउ हो जाएगा।





पर ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही नहीं होता मेरे साथी भी ऐसा ही करते है और हां एक बात मैं कह दूं की यह सब मैं कम से कम मैं पैसों के लिए नहीं था क्यूंकि तब मैं ``आज´´ अखबार के लिए रिर्पोटिंग करता था उसमें पत्रकारों को फैक्स तक का खर्चा नहीं दिया जाता और मैं दाबे से कह सकता हूं कि आठ साल के पत्रकारिता के लाइफ मे एक आदमी उंगली उठाकर नहीं कह सकता कि मैंने पत्रकारिता के नाम पर पैसे लिए हों।





तब सोंचता हूं कि हमलोग ऐसा क्यों करते है। यह जुनून किस लिए। क्या मिलता है।





जान को जोखिम में डाल अपने और अपने बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा कर पत्रकारिता के नाम पर इस जुनून से क्या मिल रहा है।





बस कुलदीप नैयर के आलेख में उद्धिZत उस वाक्य से हौसला मिलता है जिसमे उन्होंने कहा था कि `` पत्रकारिता पेशा नहीं है और यह पैसा कमाने का माध्यम भी नहीं, यह देशसेवा है, देशप्रेम है, समाजसेवा है। पैसा कमाना हो तो कोई और माध्यम चुनों पत्रकारिता क्यों।.......





...बस एक दर्द था जिसे उगल दिया है ................................

2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

दरअसल यह समस्या पत्रकारिता के ही बिकने या खत्म होने की नहीं है साडी इंसानियत के वजूद पर भ्रष्ट व्यवस्था में बैठे हैवानों की वजह से प्रश्न चिन्ह लग गया है ? लेकिन जिस तरह आप ईमानदारी से पत्रकारिता कर अपने इंसानियत को जिन्दा रखे हुए है वह काबिले तारीफ है और सराहनीय भी | हर क्षेत्र में इमानदार लोग हैं चाहे वाह IAS ,IPS ,IRS ,न्यायिक सेवा,या कोई अन्य सेवा क्यों न हो और ऐसे लोगों की वजह से इंसानियत जिन्दा है तथा देश घिसट कर ही सही आगे बढ़ रहा है | आप अपने आसपास के क्षेत्रों में ऐसे लोगों को ढूंढकर एकजुट करें यही आपका सुरक्षा चक्र और देश का सुरक्षा चक्र होगा | हम जैसे लोग तो हर-हाल में आप जैसों के साथ रहेंगे ही | हमारी जब जरूरत हो हमें याद करें ....

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आपका दर्द एकदम जायज है। लेकिन आज मीडिया ने अपने अधिकार का दुरूपयोग प्रारम्‍भ कर दिया है। अधिकांश पत्रकार समाज को भ्रमित करने में लगे हैं। आज प्रत्‍येक चैनल और समाचार पत्रों ने राजनेताओं को मोहरा बना रखा है। जैसे सारे ही पत्रकार खराब नहीं होते वैसे ही राजनेता भी खराब नहीं होते। लेकिन हम जब अनावश्‍यक रूप से किसी एक वर्ग को मोहरा बनाते हैं तब समाज का उन पर से विश्‍वास उठता है और नुक्‍सान देश को उठाना पड़ता है। ऐसा ही अब पत्रकारों के साथ हो रहा है। परिणाम आने लगा है कि अब लोग समाचारों को देखते और पढ़ते नहीं हैं। पहले आपने राजनीति को सुधारने की जगह बदनाम किया अब आपको भी आइना दिखाया जा रहा है। एक बात और स्‍पष्‍ट कर दूं कि राजनेता और पत्रकार इस समाज के ही अंग हैं। यदि ये दोनों भ्रष्‍ट हैं तो फिर समाज कैसे सभ्‍य है? बस अब तो यह करना है कि केवल सत्‍य को ही समाचार बनाया जाए। सनसनी पैदा करना, किसी भी सभ्‍य व्‍यक्ति को बदनाम ना करना जैसे काम यदि व्‍यक्तिगत स्‍‍तर पर भी नहीं किए जाएंगे तब भी इस देश का चेहरा और कुछ होगा। राजनेता और पत्रकार देश के दो स्‍तम्‍भ हैं, इन्‍हें देश हित में काम करना चाहिए।