शनिवार, 22 अक्टूबर 2011


---------- मनीजा हाशमी के साथ बातचीत-------
फैज को भारत छोड़ कर पाकिस्तान जाने का आखिर तक दुख रहा: मीनजा

अमृतसर, 16 अक्टूबर
क्रांतिकारी उर्दू शायर  फैज अहमद फैज की पुत्री मनीजा हाशमी का कहना है कि भारत पाकिस्तान के मध्य खींची गई बटवारे की सीमा रेखा को मिटाने के लिए फैज की सोच के उपर पहरा देना होगा। फैज की शायरी को अपना कर ही दोनों देशों के लोग नफरत की दीवारों को तोड़ दोनों देशों के बीच फैली अशांति को सदा सदा के लिए खत्म कर सकते है। मनीजा अपने पिता फैज की जन्म शताब्दी के अवसर पर अमृतसर की पंजाब नाट शाला में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रमों का शुभारंभ करने के लिए पहुंची हुई थी।
मीडिया के साथ बातचीत करते हुए फैज की छोटी बेटी मनीजा ने कहा कि शायरों का न कोई अपने घर होता है और न ही कोई अपना धर्म होता है। मानवता की तरक्की और आपसी पे्रम प्यार बांटना ही शायरों का असल धर्म होता है। फैज भारत और पाक में पैदा कर दी गई नफरत की दीवारों को खत्म करने के लिए उम्र भर अपने लेखनी के जरिये दोनों देशों के लोगों को जागृत करते रहे। आज भी अगर दोनो ंदेशों की सरकारें फैज की शायरी को आधार मान कर शांति की बातचीत शुरू करें तो दोनों देशों के आवाम सरकारों को इस के लिए पूर्ण तौर पर समर्थन करेंगे।
मनीजा ने कहा कि दोनों देशों की सरकारों को एक दूसरे देश में आने जाने के लिए लोगों के लिए वीजा प्रणाली नमर करनी चाहिए। सीमा के पास ही वीजा परिमट की सुविधा होनी चाहिए। वीजा की सख्त शर्तें होने के लिए कारण दोनों देशों में महिमान आसानी से आ जा नहीं सकते और न ही एक दूसरे के प्यार व शांति बांटने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते है। दोनो देशों के शायरों को अपने अपने देश के लोगों को साहित्य के माध्यम से एक दूसरे देश के लोगों प्रति पे्रम पैदा करने वाली रचनाए लिखनी चाहिएं। उन्होंने बताया कि फैज का अमृतसर के साथ काफी लगाव था। वह अमृतसर पर अध्यापन भी करते रहे। आज अपने जन पक्ष वाली शायरी के कारण ही फैज दुनिया भर के लोगों का अपना शायर बन गया है। सेना की नौकरी से सेवा मुक्त होने के बाद फैज ने सरकारी नौकरी की परवाह नहंी की और 1947 में दिल्ली से लाहौर चले गए। वर्ष 1965 और 1971 की भारत पाक जंगों के दौरान फैज के उपर काफी दबाव बनाया गया कि वह पाकिस्तानी सैनिकों के हौसले बुलंद करने के लिए कविताएं लिखे, परंतु फैज ने इसके लिए इंकार कर दिया और उन्होनें वह कविताएं लिखी तो दोनों देशों के सैनिकों के जंग के दौरान आंसू बहाने में सफल हुई। फैज ने तो शादी भी कश्मीरी लडक़ी के साथ करवाई थी। अंत तक फैज को दुख था कि वह भारत छोड़ कर क्यों आए। इस दौरान उनके साथ फैज के पुराने दोस्त प्राण नेवल भी मौजूद थे।
पंजाब नाट शाल में फैज के इंकलाबी जीवन की झलक पेश करती प्रदर्शनी भी विशेष आर्कषण का केदं्र थी। वहीं उनकी याद को समर्पित एक त्रिभाषीय कावि दरबार भी आयोजित किया गया।


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